….गोपाल वाजपेयी, वरिष्ठ पत्रकार….
जनभावनाओं, जनता की जरूरतों को कुचलकर सिर्फ सत्ताप्राप्ति व चुनाव जीतने को जन्मसिद्ध अधिकार समझने वाली बीजेपी बंगाल में अप्रत्याशित हार से सदमे में है। केंद्रीय स्तर पर बीजेपी खेमे में गम का साया है। इधर , मध्यप्रदेश बीजेपी में बंगाल हार का गम कम है। इधर असली गम दमोह का है। दमोह में मिली करारी शिकस्त को सीएम शिवराज, शिवराज समर्थक मंत्री और प्रदेश संगठन पचा नहीं पा रहा है। दमोह में मिली हार के असली कारण सामान्य जानकारी रखने वाला भी समझ रहा है। लेकिन एमपी बीजेपी के बड़े नेता इससे इतर बयानों के तीर चलाकर अपने समीकरण मजबूत करने में लगे हैं। बीजेपी नेता दमोह हार का कारण जयचंदों ..छलचंदों को बता रहे हैं। दरअसल, बीजेपी नेताओं के साथ दिक्कत ये भी है कि इन्हें बोलने की बीमारी होती है। कैमरे के फ़्लैश ऑन होते ही ये शुरू हो जाते हैं। कई बार ऐसे शब्दों का प्रयोग कर देते हैं, जिनका न तो अर्थ, मतलब जानते हैं और न उन शब्दों का इतिहास। दमोह हार को लेकर बीजेपी नेता कथित रूप से जयचंदों..छलचंदों को तलाश रही है। वे शायद भूल रहे हैं कि एक साल पहले मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार का गठन इन्हीं जयचंदों..छलचंदों के दम पर हुआ था। अगर एक साल से पहले का इतिहास देखें तो हम पाएंगे कि जब से बीजेपी को सत्ता रोग लगा तब से ही इस पार्टी में जयचंदों की मौज हुई है। ये बीजेपी वो नहीं जब चाल, चरित्र और चेहरा इनका नारा था। अब पार्टी में जयचंदों का राज चलता है। ये दर्द उन बीजेपी नेताओं व कार्यकर्ताओं से बेहतर कौन समझ सकता है जो बीते 30 साल से ज्यादा समय से निःस्वार्थ भाव से आज भी लगे हैं लेकिन उन्हें न चुनाव में मौक़ा मिलता और न लाभ या सुविधा वाला कोई पद । मैं ऐसे कई नेताओं को व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ जिन्होंने पार्टी के लिए तन, मन , धन से सेवा की, ये 30 साल से लेकर आज भी उम्मीद के साये में ही काम कर रहे हैं । वहीं पार्टी में 5 से 7 पहले आये नेता बल्ले बल्ले कर रहे हैं। बहरहाल, जयचंदों.. छलचंदों को अगर बीजेपी नेता तलाशेंगे और उन्हें बाहर करेंगे तो पाएंगे कि आधी पार्टी ही साफ हो गयी। लेकिन आधी पार्टी साफ होने बाद जो बचेगा वही असली बीजेपी होगी, जिस पार्टी को संघर्ष के लिए जाना जाता था।