भोपाल। एमपी में 28 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में भी सपाक्स माई के लाल नारे को बुलंद कर रही है, जिससे बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भी माई के लाल से बीजेपी को बहुत नुकसान हुआ था और प्रदेश से बीजेपी की सरकार चली गई थी। सपाक्स ने अब एक बार फिर बीजेपी के मंसूबे पर पानी फेरने की रणनीति बना ली है।
मध्यप्रदेश में साल 2018 के चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बाहर कराने में माई के लालों की बड़ी भूमिका रही थी वो माई के लाल। जो आरक्षण के खिलाफ है और आरक्षण खत्म नहीं करने के शिवराज सिंह चौहान के भाषण के बाद खफा हो गए थे। और फिर सामान्य पिछड़ा वर्ग का संगठन बनाकर राजनीतिक पार्टी बना ली थी जिसकी वजह से बीजेपी को ग्वालियर चंबल में हार का सामना करना पड़ा था। सपाक्स ने अब फिर हुंकार भरी है। सपाक्स उपचुनाव में अपने प्रत्याशियों को उतारेगी। पार्टी का दावा है कि सपाक्स के प्रत्याशियों ने क्षेत्र में अपना काम भी शुरू कर दिया है।
सपाक्स पार्टी उपचुनाव में एट्रोसिटी एक्ट और आरक्षण को फिर से मुद्दा बनाएगी। सपाक्स देश के सभी वर्गों और समुदायों के गरीबों को आरक्षण देने की बात करती है, जबकि जो दशकों से ऊंचे पदों पर बैठकर आरक्षण का लाभ ले रहे हैं। उनका विरोध करती है। सपाक्स ने सत्ता में आने पर अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसद आरक्षण देने का वादा किया है। साथ ही जनता से बीजेपी और कांग्रेस का बहिष्कार करने का आह्वान किया है। सपाक्स की सक्रियता से बीजेपी में चिंता है तो कांग्रेस को 2018 की तरह फायदा मिलने की उम्मीद नजर आ रही है।
साल 2018 में वोटों के ध्रुवीकरण होने का फायदा कांग्रेस को मिला था। अब जबकि उपचुनाव में भी सपाक्स ने हुंकार भरी है। तो बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरें पड़ गई है। खासकर तब… जब उपचुनाव की 28 सीटों में से 16 सीटें ग्वालियर–चंबल संभाग से है। ऐसे में अगर माई के लाल सक्रिय हो गए तो वे बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ सकती है।