भोपाल। श्रम न्यायालय के विखंडन की तैयारी का विरोध तेज हो गया है। श्रम विभाग के अधिकारियों को न्यायिक अधिकार देने की तैयारी का अधिवक्ताओं ने पुरजोर विरोध किया है। गुरुवार को औद्योगिक व श्रम न्यायालय (प्रकोष्ठ) बार एसोसिएशन की बैठक में केंद्र सरकार के इस फैसले का विरोध कर आगे की रणनीति बनायीं गयी।
एसोसिएशन के उपाध्यक्ष अधिवक्ता जी.के. छिब्बर ने बताया कि केंद्र सरकार ने विभिन्न श्रम कानूनों का एकीकरण कर श्रम विधि के सरलीकरण का प्रयास किया है। उक्त कानूनों में राज्य सरकार को अपने नियम बनाने का अधिकार भी दिया है। मजदूरी संहिता धारा, औद्योगिक सम्बन्ध अधिनियम धारा, उपजीविका स्वास्थ्य और कार्य दशा संहिता, सामाजिक सुरक्षा धारा, इन अधिकारों का प्रयोग करते हुए राज्य सरकार ने श्रम आयुक्त कार्यालय इंदौर को नए कानूनों के अनुसार नियम बनाने के लिए अधिकृत किया है। वर्तमान में श्रम न्यायालय को विभिन्न प्रकरणों के निराकरण के अधिकार हैं। लेकिन नयी संहिता के तहत श्रम न्यायालय से ये अधिकार वापस लेकर श्रम विभाग के अधिकारियों को प्रकरण के निराकरण हेतु अधिकृत किया जा रहा है। यह काम विधि सम्मत नहीं है। साथ ही अवैध व व अनुचित है। अधिवक्ताओं का कहना है कि केंद्र व् राज्य सरकार की मंशा श्रमिकों की भावना के विपरीत है। इससे श्रमिकों का शोषण बढ़ेगा।